
मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित कुण्डलपुर… एक ऐसा दिव्य स्थान, जिसे जैन धर्म में सिद्ध क्षेत्र माना गया है। यही वह पावन भूमि है जहाँ अन्तिम श्रुतकेवली श्रीधर केवली ने मोक्ष प्राप्त किया। इसी पवित्र पहाड़ी पर विराजमान हैं श्री 1008 आदिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा, जिन्हें श्रद्धालु प्रेम से बड़े बाबा कहते हैं।
करीब 1500 वर्षों से यह प्रतिमा आस्था का केंद्र बनी हुई है और आज भी पद्मासन में विराजमान होकर संसार को शांति और धैर्य का संदेश देती है।
👉 कुण्डलपुर में कुल 63 जैन मंदिर हैं, लेकिन बड़े बाबा का मंदिर सबसे प्राचीन और चमत्कारी माना जाता है।
🕉️ इतिहास और आस्था की अनोखी गाथा
एक शिलालेख के अनुसार, विक्रम संवत 1757 में पहली बार इस प्रतिमा के दर्शन भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति जी को हुए। तब यह प्रतिमा गहरी मिट्टी में दबी और जीर्ण अवस्था में थी।
इसी समय बुंदेलखंड के वीर राजा छत्रसाल, जो मुगलों के हाथों राज्य हारकर भटक रहे थे, शांति की तलाश में कुण्डलपुर पहुँचे। बड़े बाबा के दर्शन ने उनके हृदय में नई शक्ति और अटूट विश्वास का संचार किया। उन्होंने संकल्प लिया – “बड़े बाबा का मंदिर बनवाऊँगा।”
इसी दृढ़ आस्था के साथ वे पुनः युद्ध के लिए निकले और विजयी हुए। विजय के बाद उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया और भव्य पंचकल्याणक उत्सव संपन्न करवाया।
⚡ अतिशय की अद्भुत घटना
मुगल काल में जब औरंगजेब ने प्रतिमा को नष्ट करने का प्रयास किया, तो उसने तलवार से बड़े बाबा के चरणों पर वार किया।
⚔️ लेकिन तभी प्रतिमा से सफेद दूध की धारा फूट पड़ी और अचानक मधुमक्खियों का झुंड औरंगजेब की सेना पर टूट पड़ा। हमला इतना प्रचंड था कि औरंगजेब को अपनी सेना समेत पीछे हटना पड़ा।
आज भी प्रतिमा के दाहिने पैर पर तलवार का निशान और मंदिर में मौजूद मधुमक्खियों का शांत छत्ता उस चमत्कारिक घटना का प्रमाण है।
🌸 कुण्डलपुर का संदेश 🌸
कुण्डलपुर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और विश्वास का जीवंत प्रतीक है।
हर भक्त जब बड़े बाबा के दर्शन करता है तो उसके मन से यही आह्वान निकलता है –
“हे प्रभु, हमारे भीतर भी वही शांति, वही विश्वास और वही दृढ़ता उत्पन्न हो,
जो इस पावन भूमि से अनादि काल से प्रवाहित हो रही है।”