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ब्रह्माण्ड का केंद्र – आदि कैलाश

दुनिया में ऐसी बहुत सी जगहें हैं, जैसे आदि कैलाश, जो सांसारिक चीजों से ऊपर हैं। जिन पर हर विज्ञान, हर खोज बौनी नजर आती है। चाँद और मंगल तक पहुँच चुके वैज्ञानिक आज तक पृथ्वी पर स्थित उस रहस्यमयी स्थान तक नहीं पहुँच पाए जिसे “ब्रह्माण्ड का केंद्र” कहा जाता है।

आदि कैलाश – वो न हिम है, न पत्थर… जहाँ हर सांस, हर स्पंदन शिवमय हो जाता है।आदि कैलाश कोई साधारण पर्वत नहीं है। यह हिम या पत्थर का ढेर भर नहीं है, बल्कि इसे भगवान शिव की दिव्य तपोस्थली माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ आज भी भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी दिव्य ध्यान में लीन हैं। यहाँ की हर सांस, हर स्पंदन, शिवमय हो जाता है। यह वही स्थान है जिसे कई सभ्यताओं और धर्मों ने ब्रह्माण्ड का केंद्र कहा है – वह बिंदु जहाँ से चेतना का प्रसार होता है।


चार धर्म, एक आस्था: आदि कैलाश का महत्व

1. हिंदू धर्म में:

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, आदि कैलाश भगवान शिव का निवास है – एक स्थान जहाँ शिव और शक्ति की ऊर्जाएँ एकाकार होती हैं। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अनुभव करता है कि यह कोई साधारण स्थल नहीं, बल्कि दिव्यता का स्थायी केंद्र है।

2. जैन धर्म में:

जैन धर्म में आदि कैलाश पर पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैन इसे अष्टापद पर्वत कहते हैं।

3. बौद्ध धर्म में:

बौद्ध धर्म आदि कैलाश को मेरु पर्वत मानता है – वह पर्वत जो ब्रह्माण्ड के केंद्र में स्थित है, जहाँ से जीवन की ऊर्जा फैलती है।

4. बोन धर्म में:

बोन धर्म में इसे स्वास्तिक स्नो माउंटेन कहा जाता है, जहाँ से चारों दिशाओं में ऊर्जा का संचार होता है।

आदि कैलाश पर भगवान शिव ध्यानमग्न, माता पार्वती के साथ और नंदी folded हाथों से पास में बैठे हैं, आकाश में उत्तरी रोशनी और सितारे चमकते हुए

लेकिन कोई आदि कैलाश चढ़ क्यों नहीं पाया?

माउंट एवरेस्ट, जो कि आदि कैलाशसे भी ऊँचा है, पर हजारों लोग चढ़ चुके हैं। लेकिन कैलाश की चोटी तक आज तक कोई नहीं पहुँच सका। जो भी प्रयास हुआ, वो या तो अधूरा रह गया, या रहस्यमयी घटनाओं से घिर गया। कुछ लोग बीमार पड़ गए, कुछ रास्ता भटक गए, और कुछ तो कभी लौटे ही नहीं।

स्थानीय लोगों और साधुओं की मान्यता है कि यह कोई आम पर्वत नहीं है – यह एक देव स्थल है, और केवल उन्हीं को यहाँ आने का बुलावा मिलता है जिन पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। बिना बुलावे के यहाँ चढ़ने का प्रयास करने वाले लोग या तो रास्ता भटक जाते हैं या किसी अलौकिक शक्ति द्वारा रोके जाते हैं।

📌 वैज्ञानिक भी हुए असहाय

20वीं सदी में रूस और चीन दोनों ने वैज्ञानिक और पर्वतारोहण दल कैलाश की खोज में भेजे थे। लेकिन उन्हें या तो रास्ता नहीं मिला, या मौसम और शरीर की स्थिति के चलते उन्हें लौटना पड़ा। कुछ वैज्ञानिकों का दावा था कि कैलाश एक विशाल पिरामिड है, जिसकी चारों दिशाएं बिल्कुल 90 डिग्री पर हैं – जो प्रकृति में असंभव है।

कुछ रिपोर्टों में यह भी बताया गया कि कैलाश के पास समय अलग तरह से काम करता है – वहां बाल और नाखून तेजी से बढ़ते हैं, और शरीर की उम्र बढ़ती सी महसूस होती है। यहाँ से रहस्यमयी ध्वनियाँ भी सुनाई देती हैं जिन्हें अभी तक कोई नहीं समझ पाया।

यह भी माना जाता है कि चीन ने एक बार कैलाश पर चढ़ाई की अनुमति दी थी, लेकिन स्थानीय विरोध और कई अनहोनी घटनाओं के बाद यह अनुमति वापिस ले ली गई।


क्या आदि कैलाश एक जीवित पर्वत है?

कुछ साधु और तांत्रिक मानते हैं कि कैलाश एक ‘जीवित पर्वत’ है। इसकी अपनी चेतना और ऊर्जा है, जो केवल श्रद्धा से महसूस की जा सकती है। यह शक्ति या तकनीक से नहीं, बल्कि सच्चे विश्वास और शिव के बुलावे से ही सामने आता है।

यह स्थान समय और भौतिकता की सीमाओं से परे है। यह एक ऐसी यात्रा है जो केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से पूरी की जाती है।


क्या भगवान शिव अब भी इसकी रक्षा कर रहे हैं?

क्या यह वही स्थान है जहाँ से सृष्टि की ऊर्जा शुरू होती है? या फिर यह कोई ऐसी शक्ति है जिसे हम विज्ञान से नहीं, केवल आस्था से समझ सकते हैं?

शायद इसका उत्तर हमें तभी मिलेगा जब शिव स्वयं हमें अपने चरणों में बुलाएँगे। और तब यह रहस्य केवल रहस्य नहीं रहेगा, बल्कि आत्मिक अनुभव बन जाएगा।


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