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कजरी तीज व्रत की कथा हिंदू धर्म की सबसे भावनात्मक और प्रेरणादायक कहानियों में से एक मानी जाती है। यह व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और अटूट समर्पण का अमर प्रतीक है—जिसमें देवी सती और भगवान शिव के पवित्र प्रेम, बलिदान और पुनर्मिलन की अमर गाथा समाई है।

कजरी तीज व्रत की कथा – देवी सती और भगवान शिव का प्रेम
कजरी तीज व्रत: प्रेम, त्याग और समर्पण की अमर कथा

कजरी तीज व्रत की कथा का आरंभ – प्रजापति दक्ष का यज्ञ

पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव और देवी सती को नहीं। सती का मन पिता के यज्ञ में जाने को व्याकुल था, पर भगवान शिव ने बिना निमंत्रण जाना अपमानजनक बताया।

सती का अपमान और देह त्याग

पिता के घर का मोह और पति के सम्मान के बीच उलझी सती अंततः यज्ञ में पहुँचीं, जहाँ उन्हें उपेक्षा और कटु वचनों का सामना करना पड़ा। अपने आराध्य का अपमान सह न पाने पर सती ने यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दिया—यह क्षण प्रेम और स्वाभिमान के लिए परम बलिदान का प्रतीक बन गया।

शिव का क्रोध और यज्ञ विध्वंस

समाचार कैलाश पहुँचा तो भगवान शिव का क्रोध भयंकर रूप में प्रकट हुआ। उन्होंने वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया—धर्म और मान‑सम्मान की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित हुई।

सती का पुनर्जन्म – माँ शैलपुत्री

कजरी तीज व्रत की कथा यहीं समाप्त नहीं होती। सती ने हिमालयराज की पुत्री माँ शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया—यही पुनर्मिलन आगे चलकर कजरी तीज की परंपरा का आधार बना।

कजरी तीज व्रत का महत्व

यह व्रत पति‑पत्नी के अटूट बंधन का प्रतीक है। व्रती स्त्रियाँ केवल दीर्घायु ही नहीं, बल्कि सती जैसा निष्ठावान प्रेम, पार्वती जैसा समर्पण और शिव जैसी स्वीकार्यता का आशीर्वाद मांगती हैं।

विशेष परंपराएँ और लोकगीत

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत झूले, लोकगीतों और श्रृंगार के आदान‑प्रदान से जुड़ा है। शाम को शिव‑पार्वती की पूजा, कथा वाचन और रात्रि में व्रत का पारण किया जाता है।

आधुनिक समय में कजरी तीज

आज भी कजरी तीज व्रत की कथा उतनी ही प्रेरक है। कई क्षेत्रों में सामूहिक पूजा, कथा‑वाचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जो सामाजिक एकता और पारिवारिक सौहार्द को बढ़ाते हैं।

वीडियो में देखें: कजरी तीज व्रत की कथा

इस भावनात्मक कथा को दृश्यात्मक अंदाज़ में सुनने के लिए नीचे दिया गया वीडियो देखें:

Q1 (Question): कजरी तीज व्रत की कथा क्या है?

A1 (Answer): कजरी तीज व्रत की कथा देवी सती और भगवान शिव के प्रेम, त्याग और पुनर्मिलन की पौराणिक कहानी है। इसमें सती अपने पति के सम्मान के लिए प्राण त्यागती हैं, फिर माँ पार्वती के रूप में जन्म लेकर कठोर तपस्या से शिव को पुनः प्राप्त करती हैं—यही भाव इस व्रत का आधार है।

Q2 (Question): कजरी तीज व्रत कब मनाया जाता है?

A2 (Answer): कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह मुख्यतः उत्तर भारत में प्रचलित है—उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से।

Q3 (Question): कजरी तीज व्रत का महत्व क्या है?

A3 (Answer): यह व्रत पति‑पत्नी के पवित्र बंधन का प्रतीक है। स्त्रियाँ सती जैसा प्रेम, पार्वती जैसा समर्पण और शिव जैसी स्वीकार्यता का आशीर्वाद मांगती हैं। मान्यता है कि यह दांपत्य जीवन में सौहार्द, लंबी आयु और सुख‑समृद्धि लाता है।

Q4 (Question): कजरी तीज व्रत में क्या किया जाता है?

A4 (Answer): व्रती महिलाएँ निर्जल या फलाहार व्रत रखती हैं, शाम को शिव‑पार्वती की पूजा करती हैं, कजरी तीज व्रत की कथा सुनती हैं/पढ़ती हैं और रात्रि में पारण करती हैं। कई स्थानों पर झूला, लोकगीत और सौंदर्य‑सामग्री (श्रृंगार) का आदान‑प्रदान भी होता है।

Q5 (Question): कजरी तीज और हरियाली तीज में क्या अंतर है?

A5 (Answer): हरियाली तीज सावन मास में आती है, जबकि कजरी तीज भाद्रपद मास में। रीतियाँ और क्षेत्रीय परंपराएँ अलग‑अलग हैं, पर उद्देश्य एक ही—दांपत्य सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना।


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